राष्ट्रीय काव्यधारा
प्राचीन काल से लेकर आज तक हिंदी साहित्य की परम्परा सुदीर्घ एवं दैदिप्यमान रही है। भारतीय साहित्यकारों ने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय आदि अनेकानेक विषयों से संबंधित लेखन कर के मनोरंजन के साथ-साथ समाजप्रबोधन का कार्य किया है ।
राष्ट्र की मूल कल्पना मनुष्य की उदात्त भावना से प्रेरित है। परस्पर सहयोग एवं सह-अस्तित्व की भावना से राष्ट्र की अवधारणा साकार हुई है। राष्ट्रीय भावना मानव जाति के विकास के लिए वरदान स्वरूप है। वह मनुष्य का दूसरा धर्म बन गई है। भावनात्मक संवेगात्मक और प्रेरणामूलक होने के कारण वह सामूहिक प्रगति तथा पारस्परिक सहयोग के लिए सक्रिय योग देती है। विशुद्ध रुप में राष्ट्रीयता का अंतराष्ट्रीयता से कोई विरोध नही हैं। ‘जियो और जिने दो’ के सिध्दांत की पूर्ति के लिए दूसरों पर आक्रमण करने की कलुषित वृत्तियों से मुक्त होती है।